Monday, February 15, 2010

कविता - बस किराया



कुछ इस कदर पड़ी है आजकल pocket पे मार.

जो जहाँ है दिखता है बेबस और लाचार.
पहले से ही हावी था सर पे महंगाई का साया.

ऊपर से दिल्ली सरकार ने बढा दी बसों का किराया.

लूटी जा रही है जनता,हर जगह है मनमानी.

निखर रही है दिन-ब-दिन मुश्किल और परेशानी.

कौन सुनेगा, किसे सुनाये कोई दर्दो-भरी कहानी.

सब हँस रहे हैं लेकर आँखों में अश्कों का पानी.

यहाँ नहीं है कोई अपना हर कोई है पराया.

ऊपर से दिल्ली सरकार ने बढा दी बसों का किराया.

आमदनी है जस की तस,खर्चे बेशुमार है.

फूलों के इस शहर में काँटों की बौछार है.

सब्जी मण्डी लगता है जैसे सोना का बाज़ार है.

आखिर इस हालात का कौन जिम्मेदार है.
आज अर्थव्यस्था हर घर का यूँ ही है चरमराया.

ऊपर से दिल्ली सरकार ने बढा दी बसों का किराया.

फनकार : नूरैन अंसारी

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