Monday, February 15, 2010

2010 का दम = नया साल मुबारक

बिगत साल की अच्छी अच्छी बातों को सम्भाल के।
गिले शिकवे सारे मन की नगरी से निकाल के।
यूँ ही तेज करे निरंतर हम जीवन जीने का चस्का।
आओ स्वागत करे दोस्तों साल दो हज़ार दस का।
छुए नए साल में सोहरत आपकी आसमा की बुलंदी को।
ईश्वर सदा के लिए दूर करे इस दुनिया से मंदी को।
जो जी रहें अंधेरों में बिगत कई सालों से।
भगवान उनका भी दीदार कराये इस साल उजालों से।
सुलभ हो जाये रोजी,रोटी हर किसी के बस का।
आओ स्वागत करे दोस्तों साल दो हज़ार दस का
ह्रदय की बंज़र भूमि में फूटे अंकुर आरमानो का।
मिटे प्रेम मुहब्बत से दूरी इंसानों से इंसानों का।
हर रिश्तों में अपनापन झलके,हर आँगन में खुशहाली।
साल का हर दिन हो ईद दशहरा, और हर रात बने दिवाली।
समर्पित हो देश सेवा में लहू हर नस नस का।
आओ स्वागत करे दोस्तों साल दो हज़ार दस का

फनकार : नूरैन अंसारी

कविता - बस किराया



कुछ इस कदर पड़ी है आजकल pocket पे मार.

जो जहाँ है दिखता है बेबस और लाचार.
पहले से ही हावी था सर पे महंगाई का साया.

ऊपर से दिल्ली सरकार ने बढा दी बसों का किराया.

लूटी जा रही है जनता,हर जगह है मनमानी.

निखर रही है दिन-ब-दिन मुश्किल और परेशानी.

कौन सुनेगा, किसे सुनाये कोई दर्दो-भरी कहानी.

सब हँस रहे हैं लेकर आँखों में अश्कों का पानी.

यहाँ नहीं है कोई अपना हर कोई है पराया.

ऊपर से दिल्ली सरकार ने बढा दी बसों का किराया.

आमदनी है जस की तस,खर्चे बेशुमार है.

फूलों के इस शहर में काँटों की बौछार है.

सब्जी मण्डी लगता है जैसे सोना का बाज़ार है.

आखिर इस हालात का कौन जिम्मेदार है.
आज अर्थव्यस्था हर घर का यूँ ही है चरमराया.

ऊपर से दिल्ली सरकार ने बढा दी बसों का किराया.

फनकार : नूरैन अंसारी