Thursday, March 12, 2009

आबोहवा जामाने का

कुछ यूँ आबोहवा जामाने का बदलने लगा हैं.

शोलों से नहीं शबनम से ही घर जलने लगा है.

आज बेआबरू होकर भटकती है इंसानियत,

आदमी खुदगर्जी के राहों पर यूँ चलने लगा है.

होंठों की सुंदर गलियों से गाएब है मुस्कराहट,

सुना है उदासिओं का मंज़र वहा पलने लगा है.

तहजीब है तन्हाई की अपनों के शहर में,

रिश्तों का सूरज अहले सुबह ढलने लगा है.

दोस्त इस दुनिया में जिसको कहते है "नूरैन",

वो लूट कर इस्मत यकीन का अब छलने लगा है.

फनकार - नूरैन अंसारी

"नारी"

लाख मुसीबत सह कर आगे बढती है नारी.
आज भी अपने हक के खातिर लड़ती है नारी.
महफूज़ नहीं है आज भी दुनिया की आधी आबादी,
घिरी है शोषण,जिल्लत से, नसीब नहीं आजादी,
रोज मुश्किलों का एक हिमालय चढ़ती है नारी.
आज भी अपने हक के खातिर लड़ती है नारी.
रिश्ता है जिससे जीवन का कितना अहम्,कितना करीबी,
कही पर बेटी, माँ, बहन है तो कही पर है बीबी,
वजूद हमारा अपने शिकम में गढ़ती है नारी.
आज भी अपने हक के खातिर लड़ती है नारी.
दहेज़ की बलबेदी पर चढ़ती है हजारों मासूम.
कई तो दुनिया में आने से हो जाती है महरूम,
बड़ी मुश्किल से रूढ़ीवाद से लड़कर पढ़ती है नारी.
आज भी अपने हक के खातिर लड़ती है नारी.


नूरैन अंसारी