लाख मुसीबत सह कर आगे बढती है नारी.
आज भी अपने हक के खातिर लड़ती है नारी.
महफूज़ नहीं है आज भी दुनिया की आधी आबादी,
घिरी है शोषण,जिल्लत से, नसीब नहीं आजादी,
रोज मुश्किलों का एक हिमालय चढ़ती है नारी.
आज भी अपने हक के खातिर लड़ती है नारी.
रिश्ता है जिससे जीवन का कितना अहम्,कितना करीबी,
कही पर बेटी, माँ, बहन है तो कही पर है बीबी,
वजूद हमारा अपने शिकम में गढ़ती है नारी.
आज भी अपने हक के खातिर लड़ती है नारी.
दहेज़ की बलबेदी पर चढ़ती है हजारों मासूम.
कई तो दुनिया में आने से हो जाती है महरूम,
बड़ी मुश्किल से रूढ़ीवाद से लड़कर पढ़ती है नारी.
आज भी अपने हक के खातिर लड़ती है नारी.
नूरैन अंसारी
Thursday, March 12, 2009
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