Wednesday, June 4, 2008

"ज़िन्दगी"

न जाने कितना रंग बदलती है ज़िन्दगी.
सुख दुःख को लिए संग चलती है ज़िन्दगी.
मिले है कही इसको ऐसो-आराम के साए,
टुकडों पे भी देखा है पलती है ज़िन्दगी.
इसे देखा है सर छुपाते दरख्तों के छाव में भी,
महलों में भी देखा है टहलती है ज़िन्दगी.
कही पे ओढे बैठी है मायूसियों का चादर,
कही खुशियों के गोद में उछलती है ज़िन्दगी.
फूल इसको अज़ीज़ है तो कांटे भी हमसफ़र है,
वक़्त आने पे आग में भी जलती है ज़िन्दगी.
नहीं है कोई रिश्ता मजहब से इसका "अंसारी",
जिस सांचे में ढाल दो ढलती है ज़िन्दगी.
न जाने कितना रंग बदलती है ज़िन्दगी.
: Noorain Ansari

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